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याँ२ऽआव॑हऽउश॒तो दे॑व दे॒वाँस्तान् प्रेर॑य॒ स्वेऽअ॑ग्ने स॒धस्थे॑। ज॒क्षि॒वासः॑ पपि॒वास॑श्च॒ विश्वेऽसुं॑ घ॒र्म स्व॒राति॑ष्ठ॒तानु॒ स्वाहा॑ ॥१९॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यान्। आ। अव॑हः। उ॒श॒तः। दे॒व॒। दे॒वान्। तान्। प्र। ई॒र॒य॒। स्वे। अ॒ग्ने॒। स॒धस्थ॒ इति॑ स॒धऽस्थे॑। ज॒क्षि॒वास॒ इति॑ जक्षि॒ऽवासः॑। प॒पि॒वास॒ इति॑ पपि॒ऽवासः॑। च॒। विश्वे॑। असु॑म्। घ॒र्म्मम्। स्वः॑। आ। ति॒ष्ठ॒त॒। अनु॑। स्वाहा॑ ॥१९॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी घर का काम अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) दिव्य स्वभाववाले अध्यापक ! तू (स्वे) अपने (सधस्थे) साथ बैठने के स्थान में (यान्) जिन (उशतः) विद्या आदि अच्छे-अच्छे गुणों की कामना करते हुए (देवान्) विद्वानों को (आ) (अवहः) प्राप्त हो (तान्) उन को धर्म्म में (प्र) (ईरय) नियुक्त कर। हे गृहस्थ ! (जक्षिवांसः) अन्न खाते और (पपिवांसः) पानी पीते हुए (विश्वे) सब तुम लोग (स्वाहा) सत्य वाणी से (घर्मम्) अन्न और यज्ञ तथा (असुम्) श्रेष्ठ बुद्धि वा (स्वः) अत्यन्त सुख को (अनु) (आ) (तिष्ठत) प्राप्त होकर सुखी रहो ॥१९॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में उपदेश करनेवाले अध्यापक से विद्या और श्रेष्ठगुण को प्राप्त जो बालक सत्य धर्म्म कर्म्म वर्त्तनेवाले हों, वे सुखभागी हों और नहीं ॥१९॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहकृत्यमाह ॥

अन्वय:

(यान्) वक्ष्यमाणान् (आ) (अवहः) प्राप्नुयाः (उशतः) विद्यादिसद्गुणान् कामयमानान् (देव) दिव्यशीलयुक्ताध्यापक ! (देवान्) विदुषः (तान्) (प्र) (ईरय) नियोजय (स्वे) स्वकीये (अग्ने) विज्ञानाढ्य विद्वन्। (सधस्थे) सहस्थाने (जक्षिवांसः) अन्नं जग्धवन्तः (पपिवांसः) पीतवन्तः (च) अन्यसुखसेवनसमुच्चये (विश्वे) सर्वे (असुम्) प्रज्ञाम्। असुरिति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं०३.९) अस्यति दोषाननेन सोऽसुः प्रज्ञा ताम् (घर्म्मम्) अन्नं यज्ञं वा। घर्म्म इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०१.९) यज्ञनामसु च। (निघं०३.१७) (स्वः) सुखम् (आ) सर्वतः (तिष्ठत) (अनु) (स्वाहा) सत्यया वाचा। अयं मन्त्रः (शत०४.४.४.१९) व्याख्यातः ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाग्ने ! त्वं स्वे सधस्थे यानुशतो देवानावहस्तान् धर्म्मे प्रेरय। हे गृहस्थाः ! जक्षिवांसः पपिवांसो विश्वे यूयं स्वाहा घर्म्ममसुं स्वश्चान्वातिष्ठत् ॥१९॥
भावार्थभाषाः - इहाध्यापकेनोपदेष्ट्रा ये जना विद्यां शिक्षां प्रापिताः सत्यधर्म्मकर्मचारिणो भवेयुस्ते सुखभाजिनः स्युर्नेतरे ॥१९॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात जी बालके उपदेश करणाऱ्या अध्यापकांकडून विद्या व श्रेष्ठ गुण प्राप्त करतात व सत्य धर्म आणि कर्माचे पालन करतात तीच सुखी होतात. इतर होत नाहीत.